"तू-नी-दिली"
सजनी ! अर्से गुजर गए हैं तुमसे मिले।
प्रियतमे से मिलने को दिली चाहता है।
सिहरे रोम - रोम अब धड़कन तले।
तुम्हें गले लगाने को "दिली" चाहता है।
दिल लगा तुमसे हम बदनाम हो चले।
तेरे होठों के चुम्बन को दिली चाहता है।
यादों में तेरी ज्यादा हुए हम उतावले।
तुम्हें बाहों में भरने को दिली चाहता है।
तेरी रुसवाईयां, दूरियाँ, न शब्द अनचले।
तुझसे अब न सुनने को दिली चाहता है।
डिबेट,ब्याध,बहस,नौटंकी, न शब्द तुले।
तुमसे दूर करने को इन्हें दिली चाहता है।
चोंचू की परवरिश से, गैरों के दिलजले।
अब आलिंगन को तुम्हें दिली चाहता है।
रखना खयाल मेरा, साथ बेमन से चले।
प्रिये संग गुंजारने को "दिली"चाहता है।
साथ रहना तेरा, बहुत याद आता भले।
सजनी संग टहलने को दिली चाहता है।
न बात करने से होती हो आग - बबूले।
दिलरुबा संग रहने को"दिली"चाहता है।
कुछ मीठी, ज्यादातर खट्टी , यादों तले ।
हरपल बिताने को साथ"दिली"चाहता है।
○○○○○○○○○--------एम.बी.द्विवेदी "दिली"
( प्रधानाचार्य )
२०/०३/२०२३
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