शहर के शोर में गुमनामियाँ हैं। वहाँ तुम हो मगर अरमानियाँ हैं। दूर रहने की तनहाईयाँ हैं मगर, साथ रहने की दिल में तमन्नाइयाँ हैं। गाँव के रंगत में परेशानियाँ हैं। दिल में कुछ करने की जज्बातियाँ हैं। हम तुम मिले सात दिवस में सही, तेरे मिलने की प्यारी अहसासियाँ हैं।
मेरे ख्वाबों को मार डालोगी। सितम मुझ पे हजार डालोगी। तुम्हें अब मैं गर न देखूं तो। हुस्न का क्या अचार डालोगी? जीने -मरने की कसम खा लोगी। साथ रहने पे नाटक दिखा लोगी। गर तुम्हें मैं प्यार न समझूँ तो। जवानी का क्या पान कर लोगी?
मुकद्दर की लिखावट पर कोई विराग नही है। सब कुछ है जिन्दगी में मगर अनुराग नही है। कोई थी जिसकी यादों के सहारे गा रहे हैं हम। दिल में अब किसी के लिए द्वार नही है।
गर तुम्हें रुलाने पर उतर आएं तो हंगामा। गर तुम्हें सताने पर उतर आएं तो हंगामा। मुझे बदनाम करते फिरते हो,अपनी महफिल में; गर तुम्हारा सच बताने पर उतर आएं तो हंगामा।
इक हिप्स क्या टुटे , पूरा व्यवहार ही बदल गया। रक्त की जरूरत थी , उनका नजरिया बदल गया। जिनको समझते थे वो कि वह बहुत पास है मेरे। आज समझ आया मुझे औ मेरा बहम चला गया।